A poem by me after a very long long time.. Hope my Hindi teacher loves reading it..!
चला चल रहा था मैं राही
चरम सीमा को लांघने की होढ़ में ,
अभिलाषाओं को सच करने की लगन में
चला चल रहा था मैं राही
पल पल को सिक्कों में बदलने की मेहनत में
जिम्मेदारियों को अपनी निजी सफलताओं में बदलने की होढ़ में
चला चल रहा था मैं राही
ध्यानी, एकग्रत, द्रुड संकल्पी
लक्ष्य बाध्य एक तीर की तरह
चला चल रहा था मैं राही
एक दिन, अचानाक एक एहसास हुआ
किसी के न होते हुआ भी होने का आभास हुआ
रुख के मैंने जब ध्यान लगाया
अपने कंधे पे एक तितली को पाया
मैंने पूछा, "कौन हो तुम?"
मुस्कुराके उसने फुसफुसाया
उसके हर स्पर्श ने मेरे तन बदन को गुदगुदाया
वो हँस के बोली,
"अरे , मुझे नहीं पहचाना? "
"क्यूँ बनता है तू मुझसे अंजाना?"
तेरे हर कदम में, तेरे हर राह में,
तेरे हर तड़प में, तेरे हर चाह में,
तेरे हर मेहनत में, हर लगन में,
तेरी हर होढ़ में, हर तोढ़ में,
तेरे जीत में, तेरे हार में,
तेरा साथ निभाया
अपना हर रंग तुझे दिखलाया
पर, जब तूने इन्हे न देखा, न समझा, ना पहचाना
तो इसमे नहीं कोई मेरा दोष!
बस एक बार और कोशिश करती हूँ
छोटे से फलसफे को एक बार और सुनाती हूँ
विजय ओ विजय
तू जी ले ज़रा
तू जी ले ज़रा ..।
तू जी ले ज़रा
तू जी ले ज़रा..।
नाम हैं मेरा "ज़िंदगी"
और मैं एक बार फिर कहती हूँ
तू जी ले ज़रा ..।
तेरे हर कदम में तू जी ले ज़रा
मेरी हर राह में तू जी ले ज़रा
तेरे हर मेहनत में तू जी ले ज़रा
तेरी हर चाह में भी, तू जी ले ज़रा
चाहे जीत हो या हार
इतना याद रखना मेरे यार
... तू जी ले ज़रा ..।
ज़िंदगी को बिताने में नहीं कोई मज़ा
पर ज़िंदगी को जीने में है मज़ा
यह सुन मैंने समझा, ये जाना,
पहचाना और माना
और जब हुआ ये एहसास
तब से, चला नहीं चल रहा था मैं राही
झूमते जी रहा हूँ मैं राही
झूमते जी रहा हूँ मैं राही
चला चल रहा था मैं राही
चरम सीमा को लांघने की होढ़ में ,
अभिलाषाओं को सच करने की लगन में
चला चल रहा था मैं राही
पल पल को सिक्कों में बदलने की मेहनत में
जिम्मेदारियों को अपनी निजी सफलताओं में बदलने की होढ़ में
चला चल रहा था मैं राही
ध्यानी, एकग्रत, द्रुड संकल्पी
लक्ष्य बाध्य एक तीर की तरह
चला चल रहा था मैं राही
एक दिन, अचानाक एक एहसास हुआ
किसी के न होते हुआ भी होने का आभास हुआ
रुख के मैंने जब ध्यान लगाया
अपने कंधे पे एक तितली को पाया
मैंने पूछा, "कौन हो तुम?"
मुस्कुराके उसने फुसफुसाया
उसके हर स्पर्श ने मेरे तन बदन को गुदगुदाया
वो हँस के बोली,
"अरे , मुझे नहीं पहचाना? "
"क्यूँ बनता है तू मुझसे अंजाना?"
तेरे हर कदम में, तेरे हर राह में,
तेरे हर तड़प में, तेरे हर चाह में,
तेरे हर मेहनत में, हर लगन में,
तेरी हर होढ़ में, हर तोढ़ में,
तेरे जीत में, तेरे हार में,
तेरा साथ निभाया
अपना हर रंग तुझे दिखलाया
पर, जब तूने इन्हे न देखा, न समझा, ना पहचाना
तो इसमे नहीं कोई मेरा दोष!
बस एक बार और कोशिश करती हूँ
छोटे से फलसफे को एक बार और सुनाती हूँ
विजय ओ विजय
तू जी ले ज़रा
तू जी ले ज़रा ..।
तू जी ले ज़रा
तू जी ले ज़रा..।
नाम हैं मेरा "ज़िंदगी"
और मैं एक बार फिर कहती हूँ
तू जी ले ज़रा ..।
तेरे हर कदम में तू जी ले ज़रा
मेरी हर राह में तू जी ले ज़रा
तेरे हर मेहनत में तू जी ले ज़रा
तेरी हर चाह में भी, तू जी ले ज़रा
चाहे जीत हो या हार
इतना याद रखना मेरे यार
... तू जी ले ज़रा ..।
ज़िंदगी को बिताने में नहीं कोई मज़ा
पर ज़िंदगी को जीने में है मज़ा
यह सुन मैंने समझा, ये जाना,
पहचाना और माना
और जब हुआ ये एहसास
तब से, चला नहीं चल रहा था मैं राही
झूमते जी रहा हूँ मैं राही
झूमते जी रहा हूँ मैं राही
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